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Bhatakti Raakh

Om Bhatakti Raakh

कथाकार के रूप में भीष्म साहनी को सहज जीवन्तता के लिए विशेष तौर पर जाना गया । कहानी में भाषा, शैली या कथ्य को लेकर किसी भी फैशनसम्मत प्रयोगधर्मिता से बचते हुए उन्होंने कभी यह सिद्ध नहीं होने दिया कि कहानीपन को पारदर्शी ईमानदारी के अलावा किसी भी चीज की जरूरत है । 'भटकती राख' (पहला संस्करण 1966) उनकी बीस कहानियों का संग्रह है जिसमें शीर्षक-कथा के अलावा 'खून का रिश्ता', 'लेनिन का साथी' और 'सिफारिशी चिटठी' जैसी चर्चित कहानियों के साथ अपने समय में खूब पढ़ी गई अन्य कई कहानियां भी शामिल हैं। वर्तमान की जटिलताओं को अतीत के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने-समझने की कोशिश के चलते ये कहानियाँ समाज-मानवीय संवेदना के इतिहास को एक अलग ढंग से देखने की कोशिश करती हैं । 'भटकती राख' कहानी में जिस वृद्धा की स्मृतियों के माध्यम से भीष्म जी भविष्य को रचने की संकल्पना करते हैं, वह संघर्ष की जीती-जागती तस्वीर है। वैचारिक ऊष्मा के साथ रची-गढ़ी ये कहानियाँ सिर्फ हमारे आज को ही प्रतिबिंबित नहीं करतीं, बल्कि उन रास्तों को भी चिन्हित करती हैं, जिनसे नए और अपेक्षाकृत ज्यादा न्यायसंगत भविष्य तक पहुँचा जा सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, न सिर्फ पाठकों के लिए, बल्कि कथा-लेखकों के लिए भी

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  • Språk:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9788126705368
  • Bindende:
  • Hardback
  • Sider:
  • 170
  • Utgitt:
  • 1. november 2018
  • Dimensjoner:
  • 152x14x229 mm.
  • Vekt:
  • 422 g.
  • BLACK NOVEMBER
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Beskrivelse av Bhatakti Raakh

कथाकार के रूप में भीष्म साहनी को सहज जीवन्तता के लिए विशेष तौर पर जाना गया । कहानी में भाषा, शैली या कथ्य को लेकर किसी भी फैशनसम्मत प्रयोगधर्मिता से बचते हुए उन्होंने कभी यह सिद्ध नहीं होने दिया कि कहानीपन को पारदर्शी ईमानदारी के अलावा किसी भी चीज की जरूरत है । 'भटकती राख' (पहला संस्करण 1966) उनकी बीस कहानियों का संग्रह है जिसमें शीर्षक-कथा के अलावा 'खून का रिश्ता', 'लेनिन का साथी' और 'सिफारिशी चिटठी' जैसी चर्चित कहानियों के साथ अपने समय में खूब पढ़ी गई अन्य कई कहानियां भी शामिल हैं। वर्तमान की जटिलताओं को अतीत के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने-समझने की कोशिश के चलते ये कहानियाँ समाज-मानवीय संवेदना के इतिहास को एक अलग ढंग से देखने की कोशिश करती हैं । 'भटकती राख' कहानी में जिस वृद्धा की स्मृतियों के माध्यम से भीष्म जी भविष्य को रचने की संकल्पना करते हैं, वह संघर्ष की जीती-जागती तस्वीर है। वैचारिक ऊष्मा के साथ रची-गढ़ी ये कहानियाँ सिर्फ हमारे आज को ही प्रतिबिंबित नहीं करतीं, बल्कि उन रास्तों को भी चिन्हित करती हैं, जिनसे नए और अपेक्षाकृत ज्यादा न्यायसंगत भविष्य तक पहुँचा जा सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, न सिर्फ पाठकों के लिए, बल्कि कथा-लेखकों के लिए भी

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