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Bøker utgitt av Prakhar Goonj

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  • av Sudha Kasera
    208,-

  • av Chandrika Kumar 'Chandani'
    194,-

  • av Om Dutt Anjan
    194,-

  • av Madhubala Sinha
    194,-

  • av Sunanda Mahajan
    194,-

  • av Sudama Singh
    194,-

  • av Shahana Parveen
    194,-

  • av Renu Tyagi
    179,-

  • av Renu Tyagi
    194,-

  • av Hari Bakhsh Yadav 'Harsh'
    194,-

  • av Madhur Chaturvedi
    194,-

  • av R. M. Prabhulinga Shastry
    273,-

  • av Nutan Garg
    170,-

    हिंदी साहित्य लेखन के क्षेत्र में श्रीमती नूतन गर्ग जी एक परिचित नाम है।अबतक दो दर्जन से अधिक साझा-संकलन प्रकाशित हो चुके हैं । इनकी कलम भी कई सम्मान / पुरस्कार से चमक रही है। आप कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। असहायजनों की मदद और सही मार्गदर्शन करना इनके जीवन का महती लक्ष्य है। इसका स्पष्ट प्रभाव इनकी लघु कथाओं से गुजरते मुझे देखने को मिला। "अध्यवसाय" (लघुकथा- संकलन) इनकी एकल पुस्तक है। लघु कथा एक कठिन विधा है। यह] इसलिए कि इसकी संरचना में कसावट का विशेष ध्यान रखना होता है। हल्का-सा एक छिद्र यानी एक शब्द भी इसे कमजोर बना सकता है। लघु कथा को अणुबम भी कहा जा सकता है जो शक्तिशाली बिस्फोट तो करता है लेकिन यह विनाशकारी नहीं होता है, बल्कि पाठक- मन की़ सुप्त पड़ी माननीय संवेदना को सजग कर देता है। यही लघु कथा की सार्थकता भी होती है। लघु कथाओं में यही जीव तत्व इसे जीवंतता प्रदान करता है जो नूतन गर्ग की लघुकथाओं में भी मुझे देखने को मिला है। एक प्रबुद्ध नारी होने के नाते इन्हें नारी मन की व्यथा और ममता को अपनी लघु कथाओं में प्रभावशाली ढंग से उकेरने में अभूतपूर्व सफलता मिली है जो पाठक मन को भ्रमित नहीं करता बल्कि माननीय संवेदना के सौंदर्य बोध से सिंचित भी करता है । यूं तो सभी व्यक्ति का अपना एक अलग संसार होता है जिसमें उसके अनुभव के रत्न होते हैं। इनकी लघु कथाएं मेरे संसार को और भी विस्तार देती है। रंग बिरंगे जीवन दर्शन से रूबरू करवाती है।

  • av 2346, &2339, &2381, m.fl.
    179,-

    प्रायः तीन सौ से भी अधिक वर्षों से 'कुण्डली' नामक छन्द रचना और आलोचना दोनों ही सन्दर्भों का केन्द्र रहा है । बिना ईश्वरीय कृपा और विलक्षण काव्य सामर्थ्य के कुण्डली सृजन सम्भव ही नहीं । हास्य प्रधान रचना 'गड़बड़झाला' एक सौ इक्यावन चुटीली कुण्डलियों का अनूठा संग्रह है । विश्व्कीर्तिमानक डॉ. ओम् जोशी द्वारा विरचित 'गड़बड़झाला' में हास्य/व्यंग्य के अनेक शब्दचित्र उपलब्ध हैं, जो पाठक/श्रोता के अधरों पर मुस्कान बिखेरने में सर्वसमर्थ हैं । सबसे महत्त्वपूर्ण कथ्य तो यह है कि डॉ. ओम् जोशी ने 'कुण्डली' की छान्दसी अवधारणा को पारम्परिक रूप में भी स्वीकारा है और समानान्तरतः इसे परिशोधित कर नूतन स्वरुप भी प्रदान किया है । डॉ जोशी का समग्र कुण्डली संसार ऐसा ही आश्चर्यबोधक है ।

  • av Om Joshi
    165,-

    सफल सकल अभियान प्रासंगिक दोहे दोहा भारतीय हिन्दी पद्य साहित्य का सर्वाधिक लोकप्रिय छन्द है । अनेकानेक प्राचीन और अर्वाचीन रचनाकारों नें दोहों को अपना रचना आधार बनाया है । इसकी दो पंक्तियाँ और अड़तालीस मात्राएँ कुशल रचनाधर्मी के भावों को इस प्रकार अभिव्यक्त कर देती हैं कि पाठक/श्रोता चमत्कृत/भाव विभोर और पुलकित पुलकित हो जाते हैं । अनेकानेक ग्रन्थों के रचयिता विश्वकीर्तिमानक डॉ. ओम् जोशी की प्रासंगिक दोहों पर केन्द्रित 'सफल सकल अभियान' - रचना अपने आप में भाषा, भाव, प्रवाह, रस, अलंकार और दृश्यात्मकता से परिपूर्ण विशिष्टतम रचना है । आपके इस प्रस्तुत मौलिक दोहा संग्रह में वाग्देवी माता सरस्वती की आराधना के अतिरिक्त राजनीति, लोकतन्त्र, स्वार्थ, दंगे, हिंसा, प्रदर्शन, नेताओं के घृणा आदि के समानान्तर भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्यों का मनोरम से भी मनोरम वर्णन उपलब्ध है । इस दोहा संग्रह में गुरुओं के प्रति सम्मान और प्रेम का महत्त्व विशेष उल्लिखित है । प्रेम की महिमा विषयक एक दोहा अवश्य द्रष्टव्य - जिनको ज्ञात विशेषतः 'प्रेम' शब्द का अर्थ । स्वतः सफल वे सर्वतः, पण्डित सर्वसमर्थ । । इस दोहा संग्रह में सूक्तियों के अनेक प्रयोग भी सहज उपलब्ध हैं । डॉ. ओम् जोशी अपने देश 'भारतवर्ष' से अगाध प्रेम करते हैं । इस भाव को प्रदर्शित करने वाला एक विशेष दोहा प्रस्तुत है - कहीं न पूरे विश्व में, भारत जैसा देश । यहाँ व्याप्त सर्वत्र ही, सम्मोहक परिवेश । । यह पुस्तक अवश्य ही पठनीय है ।

  • av 2337&2377. &2342&2367&2357&2366&
    208,-

    उम्र के साथ- साथ मेरा कहानी बस बीस-बाईस साल की उम्र तक बढ़ी और उस कहानीकार दिवाकर को शायर और कवि ने छुपा दिया। आज उम्र के तैंतालीसवे साल में जब कहानियाँ लिखी तो ये महसूस हुआ की ये कोई आसान काम नहीं है, हाँ विचारो को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता है, पत्रों का चयन, घटनाकर म को मोड़ना, दिशाएँ बदलना, अपनी मन स्थिति को पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करना ये सभी बातें कहानीकार का दायरा बहुत बड़ा कर देती है। इस संग्रह में आपको बाल मानोविज्ञान को अभिव्यक्त करती कहानियाँ 'एक गुनाह छोटा-सा', 'कुछ गंदली हुई राहे' और 'मासूम निगाहे' मिलेगी वास्तव में इन कहानियों को उम्र के उस पड़ाव पर लिखा गया जब स्वयं मैं बालक ही था। 'कुछ धागे उलझे हुए थे, ' 'और साँझ ढल गई', 'शून्य की खोज में', 'डार से बिछुड़ी', 'मशीन चलती रही', कहानियाँ जीवन के बहुत नजदीक है आपको लगेगा की कहानी के पात्र आपके आस - पास ही है सही मायनों में ये कहानियाँ यथार्थ के करीब है। महानगरों के जीवन से, यहाँ के लोगों से प्रभावित होकर 'फिर सच को मार दिया उसने' और कुछ धागे उलझे का हुए सृजन किया। बम्बई में जीवन का पंद्रह वर्ष लम्बा पड़ाव रहा। नाम और शेहरात देकर इस महानगरी ने मुझे अपना बना लिया। कलकत्ता का बेगानापन व्यक्त किये बिना मेरा यह कहानी- संग्रह शायद अपूर्ण रहता इसलिए 'एक शहर बगाना सा' लेख होते हुए भी, इस पुस्तक में शामिल है। सिसकते अरमान को कैफी आज़मी, ज़ावेद अख़्तर, शबाना आज़मी, निदा फ़ाजली, और नौशाद साहब जैसे नामों ने सँवारा था। वही आज कुछ धागे उलझे हुए पुस्तक मेरे की भीड़ में अकेलें खड़ी हैं, इसे तलाश है आपकी, जी हाँ... आपकी और आपने इन कहानियों को कितना अपना समझा यह तो मुझे आपके पत्रों से ही पता लगेगा।

  • av 2337, &2377, &2309, m.fl.
    170,-

    डॉ अशोक कुमार (1950), फीरोज़ गांधी पी0जी0 कालेज, रायबरेली में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए 2012 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अंग्रेजी भाषा और साहित्य पर आलोचनात्मक लेखन द्वारा एक नयी शोध तथा सोच को जन्म दिया। डाॅ0 अषोक कुमार ने अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में दर्जनों सेमिनार, कान्फ्रेसेज, वर्कशॉप आदि में अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये उनमें सकारात्मक सहभागिता की। भारतीय अग्रेंजी लेखकों में मनोहर मलगाँवकर तथा मंजू कपूर के जीवन और सहित्य पर दो पुस्तके डाॅ0 अशोक कुमार ने प्रकाशित की। इसके अतिरिक्त देश की प्रमुख शोधपत्रिकाओं तथा आलोचनात्मक संकलनों मेें आप के द्वारा लिखित दर्जनों विद्वतापूर्ण लेख प्रकाशित हुये। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आपने डी0 फिल की उपाधि 1993 में प्राप्त की। जनमानस के लिये आपने अंग्रेजी में हिन्दुस्तान टाईम्स, पायनियर अवर लीडर समाचार पत्रों में साहित्य, कला, ज्योतिष पर लेख लिखे। आप छत्रपति शाहू जी महाराज विष्वविद्यालय, कानपुर के अंग्रेजी साहित्य की बोर्ड आफ स्ट्डीज के सदस्य रहे। देष की कई प्रमुख विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक गतिविधियों से आप जुड़े रहे। डाॅ0 अशोक कुमार ने 2008 में अंग्रेजी में "दि एक्सप्रेशन" शोधपत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। उसका सफल संपादन तथा प्रकाशन आपने किया। हिन्दी में भी आप के लेख समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये।

  • av Shekhar Chandra Joshi
    170,-

    ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿

  • av 2337&2377. &2323&2350&2381 &2332&
    165,-

  • av Artee Priydarshnee
    179,-

  • av Shiv Kumar Dubey
    170,-

  • av R K Tiwari 'Matang'
    194,-

    ¿¿¿¿¿¿ "¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿" ¿¿ ¿¿-¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿

  • av Samir Gangli
    165,-

  • av Anuj Ramanuj
    222,-

  • av R K Dr Tiwari Mang
    208,-

  • av Artee Priydarshini
    236,-

  • av Mahender Maddheshia
    194,-

  • av Hari Ram Kahar
    179,-

  • av Dinesh Chandra Pathak
    208,-

  • av Kumar Vikrant
    179,-

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