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ठाकरे एक राजनैतिक उपन्यास है।मुख्य भूमिका में संजय ठाकरे हैं।जो अपनी पिताजी देवनाथ ठाकरे जी के बाद "ठाकरे"दल का अध्यक्ष नियुक्त होते हैं।उनके पास देवनाथ ठाकरे जी के जैसे बुद्धि की कमी होती है।इसके कारण उनको दल चलाने में बहुत परिशानी झेलना पड़ता है।उनकी काका का बेटा परतिदंडी होता है।संजय ठाकरे अपनी परिवार बाद राजनीति को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं।लेकिन अंत में किया होता है?संजय ठाकरे अपनी विरासत की राजनीति को बचा पाते हैं की नही।ये इस किताब में लिखा गया है।किताब में राजनीति के ऊपर बहुत कुछ जानकारी मिल सकता है।
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