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इस किताब में शामिल चार लेखों को आप मॉडर्न ज़माने की दंतकथाओं की तरह पढ़ सकते हैं। ईव एंसलर अमेरिकन नाटककार और मशहूर दि वजाइना मोनोलॉग्स की लेखक ईव ने अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नारंगी बालों की गुत्थी बेहतरीन तरीके से सुलझाई है। दानिश हुसैन हिंदुस्तानी दास्तानगो, ऐक्टर और कवि दानिश ने सिर्फ़ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किस्से ही नहीं सुनाए बल्कि उसी बहाने संघ परिवार के दिनोंदिन बढ़ते अतिवादों का भी लेखा-जोखा पेश किया है। बुरहान सॉनमेज़ तुर्की उपन्यासकार बुरहान ने तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप एर्रदोगान के भटकाव भरे पूरे राजनीतिक करियर का खाका दिया है। निनॉच्का रॉस्का फिलीपींस की स्त्रीवादी उपन्यासकार निनॉच्का ने दुतेर्ते की पुरुषवादी सत्ता विमर्श की पोल खोली है। इन लेखकों को 'तटस्थ' समझने की भूल बिल्कुल न करें। ये ऐसे विचारक, ऐसे जादुई लेखक और कारामाती कलाकार हैं जिन्हें शैतानी ताकतों, दुनिया के भविष्य और आने वाले कल को देखने की ख़ास नज़र मिली है। दुनिया का वर्तमान दर्दनाक है लेकिन भविष्य बेहद ज़रुरी। चार दमदार लेखक, चार ग्लोबल दबंग।
क्या हमारा सारा जीवन ही इस वो तो नहीं की संभावना से प्रेरित हुआ नहीं लगता! मन की अनिश्चित, असंगत, अकसर टेड़ी, उलझन मे डालने वाली चालो और उड़ानों पर भटकती होती है जिंदगी। 'है या नहीं 'के दो पाटो के बीच पीसते रहने को विवश। अक्सर वो तो नहीं की छांव मे थोड़ा शुकुन पाती हुई! पर अगर मगर के चक्कर सब कुछ गडमड सा लगता हुआ। कही वो तो नहीं, कहीं ये तो नहीं! इन दो धुरियों मे घुमता ही रहता है। जीवन चक्र! कैसा संयोग! कैसे रंग है जीवन के! जब जीना चाहा, जब प्यार चाहा, मिला नहीं। जिसके लिए सब कुछ छोड़ कर उसका होना चाहा, वो भी नहीं हो पाया। । जिसे भी चाहा मिला नहीं। और जब प्यार और खुशियाँ मिली भी तो अब! जब जीवन ही दांव पर लगा है। ऐसा लगता हुआ कि सब कुछ खत्म होने वाला है। आज एकाएक उसी जीवन से मोह सा हो गया! जब मृत्यु पास आती दिखी अभी तो जिंदगी जी ही नहीं है! बहुत कुछ करना, देखना है और जीते जाना है....जब सब ओर मौत और विनाश का तांडव हो रहा होता। जब ऐसे बुरे फंसे हैं, चारो तरफ पानी। बाढ़ का पानी, बादल फटने की जल राशि मे जीवन अंत होना करीब तय सा लगता हुआ। तब जीने की इच्छा बढ़ती जाती। जैसे जीने की बढ़ती इच्छा और आसन्न मृत्यु के बीच कोई गहरा संबंध हो!
मनुष्य में अद्भुत शक्ति है, वह रो भी सकता है और हँस भी सकता हैI परिस्थितियाँ तो निर्माण होती हैं, उनका प्रभाव पड़ता है परंतु उनका कितना प्रभाव उस पर पड़े यह मनुष्य स्वयं नियंत्रित कर सकता हैI सतत प्रसन्न रहना एक कला हैI यह कला हर व्यक्ति को आती है, परंतु हम विस्मित हो गए हैंI हम अपना स्वरूप भूल गए हैंI यह पुस्तक आपको अपने मूल रूप में स्थापित करने का प्रयास है; जिसके द्वारा आप सतत प्रसन्न रह सकते हैंI कोई भी परिस्थिति आपको विचलित नहीं कर सकती है; यह अहसास आपको सदैव रहे; यही मेरी कामना हैI मेरी अन्य पुस्तकें अंग्रेजी में 'हैप्पीनेस 24/7', 'कृष्ण दी सुपर कॉन्शसनेस' और हिंदी में 'दादी के बोल' भी आप पढ़ें और लाभान्वित हों; यह अपेक्षा रखते हुए आपके सहयोग के लिए धन्यवादI
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